सर्द सुबह में
घूमने का मजा
कुछ और ही
है ,यूँही टहलते
टहलते एक बागीचे
में बैठा और
निहारने लगा आस
पास के नजारों
को ,जिसका आनंद
कुछ और ही
है .
पहली दफा इतने
गौर से औंस
की बूंदों को
मोती के सामान
चमकते देखा जो
गिरी थी हरी
घास के ऊपर
उन्हें देख कर
लगा इन मोतियों
की चमक कुछ
और ही है.
प्रकृति की खूबसूरती
को देख रचनात्मकता
की लहरों में
बहना लाज़मी था
और यूँही लिख
डाली पहली चंद
पंक्तिया
वही पर ,तब
जाना भावो को
शब्द देना कुछ
और ही है
और वो
पंक्तियाँ थी :
छटा दिया कोहरा
उषा की किरण
ने
दिख रही है
औंस की बूंदे
बिखरी हुई जमीन
पर
मानो मोती बिखेरे
हो फ़ज़ा ने
या झलके है
आसमा के आंसू
धरा पर